Rajiv sinha

Add To collaction

और मंत्रीजी नेतियाने लगे -आरंभ 1

दोस्तों ,आज से साहित्य की एक और विधा व्यंग्य के क्षेत्र में एक नई श्रंखला आरंभ करने जा रहा हूँ , इसमें मेरे द्वारा रचित शब्द “ नेतियाने ” का उपयोग हुआ है , इसका शाब्दिक अर्थ और इस श्रंखला से क्या नाता हैं आपको इस श्रंखला को पढ़कर ही समझ आयेगा | ये श्रंखला एक दुर्घटनावश बने नेताजी और उनके पीए मिश्राजी के बीच संवाद के उपर आधारित हैं आपके भरपूर आशीर्वाद की अपेक्षा है | इस कथानक के पात्रों का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति या घटनाक्रम से कोई संबंध नहीं है । 


 और मंत्रीजी नेतियाने लगे – आरंभ १ “

         अवधबिहारीजी मंत्री बन गए, अवधबिहारीजी मंत्री बन गए “ इस मुख्य समाचार की सुर्ख़ियों से सारे स्थानीय समाचारपत्र के पहले पन्ने भरे पड़े थे | अरे भाई इसमें इतना उछल कूद या शोर शराबे की क्या आवश्यकता है ? आवश्यकता है भाईसाहब . आवश्यकता है , क्योंकि अवधबिहारी जी कोई साधारण मनुष्य नहीं है वो तो प्रजातंत्र की ताकत का एक जीता जागता नमूना है | आइये तो अवधबिहारीजी के बारे में जानने की चेष्टा करते है | अवधबिहारी जी नेता बनने से पहले अध्धु के नाम से जाने जाते थे , एक गरीब विशेष वर्ग से ताल्ल्लुक रखते थे और शिक्षा के नाम पर बमुश्किल ५ वी जमात तक स्कूल होकर आये थे | जब ५ वी बार , ५ वी की परीक्षा में निल बटें सन्नाटा आया तो पिताजी ने उन्हें स्कूल से निकाल कर केले का ठेला पकड़ा दिया और पिछले बीस पच्चीस बरस से अध्धु जी शहर की सड़कों पर चित्तीदार केला का ठेला चलाते फिर रहे थे और जोर जोर से चिल्लाने में माहिर हो गए थे “ केले ले लो केले , चित्तीदार केले , २० रुपये दर्जन “ | ऐसे ही केले बेचकर अपना और अपने १० सदस्यीय परिवार का पेट पालते ।

            एक बार बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा और अध्धुजी केले बेचते हुए फलाना ढीमाका पार्टी के दफ्तर के पास से गुजर गए | सिर पर इलेक्शन आ रहे थे और हर पार्टी उसकी जोरों शोरों से तैयारी कर रही थी वहां अफरा तफरी का माहौल था , कार्यकर्ताओं में सिर फुट्टवल का प्राचीन खेल हो रहा था | अध्धुजी को पता नहीं था की जिस वर्ग विशेष से वो सम्बन्ध रखते हैं उसी वर्ग विशेष के हितों को ध्यान में रख कर फलाना ढीमाका पार्टी का गठन हुआ था | केले का ठेला लेकर जैसे ही अध्धु जी पार्टी मुख्यालय के भीतर घुसने लगे एक बूढ़े सज्जन लोगों की भीड़ से बचते बाहर निकले और अध्धु जी से टकरा गए | अध्धुजी ने माफ़ी मांगी ही थी के उन सज्जन ने सिर्फ एक सवाल दाग दिया “ कौं जाति का हो बे “ | अध्धुजी की डर से घिग्गी बंध गई और उन्होंने हकला कर अपना जाति बताया | उनका उत्तर सुन बूढ़े बाबा ख़ुशी से चिल्लाये “ लो भाई लोगों लो , मिल गया केंडीडेट हमें चुनाव के लिए | वो का कहते हैं बगल में छोरा और सहर में ढिंढोरा” | वो उनकी बांह पकड़ पार्टी दफ्तर में ले गए | पता चला की बूढ़े बाबा पार्टी के अध्यक्ष हैं और इलेक्शन का टिकिट बाटने का जिम्मा उन्ही को दिया गया था | 

   0
0 Comments